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तेतीस करोड़ देवी देवताओं के वारिश हम भारतीय हैं,इस में कोई विवाद नहीं होनी चाहिए. भगवान किसी के ठीकेदारी पर नहीं,भक्ति पर टिके हैं. मेरे जन्म के लिए माँ ने तमाम देवी देवताओं से मनत मांगी थी.सत्यनारायण भगवान की कथा अक्सर मेरे घर में,मेरे गावं में तथा मेरे रिश्तेदारों मित्रों के यहाँ होती है, इस लिए मैं कह सकता हूँ कि देवताओं पर किसकी कब्ज़ा हो? तो मैं सबसे पहले उसमे हूँ.
भगवान किसी न किसी रूप में अपने भक्तों को देते ही रहते हैं.अगर भगवान ने केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर के माध्यम से कुछ तुच्छ सम्पति भारतवासियों को दिया है तो यह ख़ुशी कि बात हैं.इसे भारतीयों के हित में खर्च कर देना चाहिए. मंदिर का निर्माण कल्याण के लिए किया गया था, इसलिए मंदिर के सम्पति से कल्याण का काम होना चाहिए.
भारत के तमाम मंदिरों में अकूत सम्पदा है, अगर इन सम्पदावों को हम इकठ्ठा कर ले तो हमारे भारत देश के सामने सारे देश फीके पड़ जायेंगे. भगवान उचित समय कि तक में रहे होंगें, और ओ उचित समय आ गया है जो उन्होंने जनता को सुबुद्धि देना सुरु कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के पहले के निर्णयों के मुताबिक भी किसी मंदिर के देवता उस मंदिर से जुड़ी संपत्ति के मालिक होते हैं. इस लिए यह निर्विवाद है कि उस संपत्ति पर किसी और का अधिकार नहीं हो सकता हैं. हा इस बार इस बात का विशेष ध्यान देना होगा कि हक़ साडी जनता का हो और जन कल्याण में सम्पति लगे.
जरुरत पड़े तो सरकार को कानून में संशोधन कर के इस सम्पति को राष्ट्र के नाम कर दे. इस धन से भारत कि प्रतिष्टा लौटेगी, कोई भारतवासी भूखा नहीं रहेगा. सबके तन पर वस्त्र रहेगा.
हे भगवान आपने भारतियों को अकूत सम्पति दे दी अब थोडा सा सुविचार दे दीजिये जिससे धन रहते अधर्म न हो.
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