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समलैंगिकता सामाजिक विकृति हैं. ये विकृति सदियों से चली आ रही है. हर युग में इस तरह के अभागा लोगों का जन्म होता है. मानसिक विकृति
के शिकार ये लोग समाज के लिए उतना खतरनाक नहीं हैं, जितना खतरनाक समलैंगिकता पर चर्चा करनेवाले है. कहावत है-बद भला,बदनामी ना भला. मानव-मन जिज्ञासाओं से भरा है. उस जिज्ञासा में समलैंगिकता भी शामिल है.
प्रत्येक पति-पत्नी बंद कमरे में जो कुछ भी करते हो,आदर्श है. लेकिन बंद कमरे में जो हो रहा है उसको खुले सड़क पर करने की मांग करने वाले मानसिक विकृति के शिकार कहे जायेंगे.समलैंगिकों को आपने हल पर छोड़ देना चाहिए. जो लोग इसे सड़क पर उतरने की कोशिश करें उन्हें कठोर दंड देना चाहिए.
कानून नहीं बना था तब से पति पत्नी का सवरूप समाज में था. क़ानूनी मान्यता की बात करने वाले कही ना कही विबाद कर के इस मुद्दे को जिन्दा रखना चाहते हैं. चुकि भारत में कुछ भी बोला जा सकता है. अविब्यक्ति के नाम पर इस छुट का नाजायज इस्तेमाल चर्चा में रहने के लिए कुछ लोग कर रहे है.
मानिसिक रोगियों का इलाज होना चाहिए,और जो मानसिक रोगीओं को भरमा रहे हैं उन्हें कठोर दंड देना चाहिए.
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