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खतरे में लोकतंत्र

avibyakti
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लोकतंत्र खतरे में है. विधायिका भ्रष्ट है.न्यायपालिका लापरवाह और गैरजिम्मेदार है. कार्य-पालिका, विधायिका और न्यायपालिका के लोगों के बचाने में परेशान है. जनता किसके पास जाये किससे आशा करे. अपने ही बुने जाल में फँस गई है.
रामदेव जी को रामलीला मैदान से बेशर्मी से खदेड़ा गया. उससे भी बेशर्मी से सीबीआई को पीछे दौड़ा दिया गया.जनता भौचक हो कर देखती रही कि आखिर रामदेव जी तो देश हित की ही बात कर रहे थे, कला धन,और भरष्टाचार पर ही तो आवाज़ उठा रहे थे. सीबीआई कि भूमिका पहले से ही दागदार थी अब और विकृत हो गया.
अन्नाहजारे के साथ जनता कि भावना जुडी हुयी है. बिना जनभावना के कोई भी आन्दोलन सफल नहीं हो सकता, सत्ता के मद में सरकार इस बात को भूल गई है. आनन-फानन में लोकपाल बिल संसद में पास कराने की तैयारी का मतलब क्या है ? कई दौर के वार्ता में एक पक्षीय लोकपाल बिल का क्या मतलब है ? कानून तो पहले से ही भरे हुए हैं भ्रष्टाचारियों के खिलाफ, पर नतीजा क्या निकलता है. कभी दूर संचार मंत्री, फसते है, तो कभी प्रधान मंत्री का ही नाम आ जाता है. स्विस बैंक में जमा रूपये आखिर किस रास्ते गए ? देश में तो एक से बढ़कर एक कानून है. जनता कि गाढ़ी कमाई क्या लुटने के लिए ही सरकार का मतलब है?
अन्ना हजारे को अनशन करने का इजाजत नहीं मिला. लोकतंत्र में यह खतरनाक प्रवृति है. इतनी बड़ी दिल्ली भारत कि राजधानी इतनी छोटी कैसे हो गई ? सत्याग्रह के लिए इजाजत नहीं देने वाली सरकार लोकतान्त्रिक है कैसे? जनता को इस मौन प्रश्न का जवाव चाहिए.
मामला बढ़ रहा है. जनता को सड़क पर उतारने की गलती सरकार कर रही है. लोकनायक जय प्रकाश नारायण को इमरजेंसी के दौरान जेल में बंद कर दिया गया, नतीजा निकला कि हजारो युवक सड़कों पर लोकनायक जय प्रकाश नारायण के समर्थन में उतर पड़े. सरकार कि हेकड़ी बंद हो गई, आपस में विरोध हो गया, और शासन तंत्र धरासायी हो गया था.
अन्ना जी को रोका जायेगा सत्याग्रह के लिए. 144 धारा लगाया जायेगा तो निश्चित ही कानून टूटेगा. अन्ना हजारे गिरफ्तार होंगे तो निश्चित ही अन्ना के समर्थन में जन सैलाब उमडेगा. लोकतान्त्रिक देश के नागरिक लोकतंत्र को कभी खतरे मई नहीं देखना चाहते हैं.
दिनकर जी ने लिखा है- जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है.

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