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महंगाई पर चर्चा संसद के अन्दर चल रही है. विपक्ष सरकार को घेरने की तैयारी में है. मिडिया को मसाला एक से एक मिल रहा है. मोसम ख़बरों के लिए अच्छा है. पता नहीं महंगाई मकी चर्चा में कितना अरब, खरब रूपये खर्च होगा?
अर्थ शास्त्रियों की नजर में भारत देश, अपना देश,विकाश कर रहा है.पर गावं के लोगों का व्याहारिक जीवन कोई मई-बाप आकर देखे तो पता चलेगा विकाश का सच. आज-कल राहुल गाँधी को गावं के लोगों का व्याहारिक जीवन नजदीक से देखने को मिला है. पर क्या ये सचाई है समझ पाए ? दरअसल नाटक-नौटकी करना अलग बात है और गावं में जाकर समस्याओं को समझना अलग बात है.
विकाश दर घटे चाहे बढे ,ग्रामीण लोगों को नमक खरीदने के लिए सोचना पड़ता है. ऐसे लोग भी है जो रोज दो रूपये का मशाला खरीद कर खाना पकाते है. किरासन तेल की सब्सिडी के लिए लाख कोई लादे पर रत के अँधेरे में गावं अँधेरा रहता है.किसी के यहाँ दिया नहीं जलती है. एक सर्वेक्षण इस पर वि करने की जरुरत है की देश के विकाश के साथ क्या गरीब लोग, खास कर गावं के गरीब विकाश कर रहे है या नहीं?
मै गावं मे रहता हु रोज पीड़ा से गुजरते लोगो को देखता हूँ. पीड़ा कई तरह की है, कोई बाप अपने बेटे की इलाज करने मे असमर्थ है तो कोई मां अपनी बेटी की फटी साड़ी के जगह नई खरीदने में अक्षम है.
महंगाई पर लगाम लगे देश का विकाश का मतलब खुशहाली से हो.मुंबई के झोपड़पट्टी में रहने वाले गरीब लोगों से बदतर जिन्दगी गावं का गरीब जी रहा है. तमासा न करके खुशहाल भारत कैसे बने गावं के अंतिम आदमी के तन पर वस्त्र, पेट में अन्न. दिमाग में में शांति कैसे कायम हो इस पर शोध हो.
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