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लोकपाल बिल की प्रतिया जलाई गई. देश भर में कमजोर बिल को संसद में पेश करने का विरोध हुआ. विपक्षी दलों ने भी इसका विरोध किया. विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि जब इस बिल के प्रावधान प्रधानमंत्री पर लागू ही नहीं होते तो इसे लागू करने से कोई फायदा नहीं है।
विपक्ष के नेता तो सत्ता पक्ष के खिलाफ बोलते ही रहते है, इस लिए विपक्षी नेताओं के विरोध का कोई खाश मतलब नहीं है. लेकिन पुरे देश में जिस तरह से लोकपाल बिल की प्रतिया जलाई गई यह सोचने वाली बात है. आखिर जनता के द्वारा जनता के संविधान मे जनता की आकांक्षाओं की क्यों अनदेखी की जा रही है. क्या सरकार अपने पसंद, अपने घपले-घोटालों के लिए सारे तंत्र का इस्तेमाल करेगी?
प्रधान मंत्री क्यों डर रहे है लोकपाल के दायरे में आने से. डर का कारण क्या है? नीत-नयी घोटालों में भविष्य का डर तो नहीं है. अगर ये डर है तो ऐसा प्रधानमंत्री भारतियों को नहीं चाहिए. इमानदार आदमी कभी किसी से डरता नहीं है. भारतियों की आकांक्षा है, निडर और इमानदार ब्यक्तित्व भारत का नेतृतव करे.
अभी भी समय है. नेतृत्व, आम जन को दिखा दे कि वो बहादुर है,निर्भीक और इमानदार है. कड़ी से कड़ी लोकपाल बिल से भी कोई डरने वाला नहीं है. सांच को आंच क्या, जनता इसी को देखना चाहती है.
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