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स्त्री,पुरुष की अर्धांगिनी है. या हम यूँ भी कह सकते पुरुष,स्त्री का अर्ध अंग है. विवाद पैदा करनेवाले हमेशा पुरुष-स्त्री स्वतंत्रता पर विवाद करते है इतिहास और धर्म साक्षी है कि स्त्रियों के सम्मान या महत्व में समाज में कोई कमी नहीं रही है. माँ का सम्मान बच्चों के मन में पिता से ज्यादा होता है.
इस लिए विवाद इसमें नहीं हो सकता कि स्त्री बड़ी या पुरुष.पिता का सम्मान देख कर माँ का खुश होना और माँ का सम्मान देख कर पिता का खुश होना प्रेम का परिचायक है.
प्रेम में पहले तुम होता है.”मै” बाद में होता है. लेकिन प्रेम के आभाव में पहले “मै” हो जाता है,जो समाज के लिए घातक है. यही “मै” तमाम बहस और विकृति को जन्म देता है. इधर के कुछ दशकों से पहले “तुम” की जगह “मैं” हो गया है जो तमाम बहस का कारण बना है.
राजनीती और समाज में महिलाएं आगे बढ़ी हैं. लोगों की नजरिया भी बदला है. गावं देहातों में किसी लड़की का सायकिल चलाना आश्चर्य से देखा जाता था,मोटरसायकिल और कार की बात तो दूर की थी.पर आज स्तिथि भिन्न है. अपनी बहु-बेटियों को देहरी से बाहर देख कर हम ससंकित होते थे आज हम खुश होते है. यह सामाजिक क्रांति है.
महिला सशक्तीकरण की वर्तमान दिशा और दशा को हम ठीक ही कहेंगे. महिला सशक्तीकरण का अर्थ है कि महिलाये किसी भी बात का निर्णय स्वय ले सके. निर्णय लेने के लिए शिक्षा आवश्यक है. आज कि लड़कियां शिक्षा में लड़कों से कम नहीं है. निर्णय लेने कि क्षमता सशक्तीकरण का आवश्यक बिंदु है.
किसी कार्य में अतिशयोक्ति हो सकती है. सशक्तीकरण का दिखावा थोडा होना स्वाभाविक है,पर कार्य भी दिख रहा है. यूँ तो भारत का संविधान सभी भारतीय महिलाओं की समानता की गारंटी देता है (धारा 14), राज्य द्वारा किसी के साथ लैंगिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता (धारा 15(1)), सबों को अवसरों की समानता प्राप्त है (धारा 16), समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान है (धारा 39(घ)। इसके साथ ही, राज्य द्वारा महिलाओं एवं बच्चों के पक्ष में विशेष प्रावधानों की (धारा 15(3)) अनुमति देता है, महिलाओं के सम्मान के प्रति अपमानजनक प्रथाओं के त्याग (धारा 51(अ)(ई)), तथा राज्य द्वारा कार्य की न्यायपूर्ण एवं मानवीय स्थितियों तथा प्रसूति राहत को सुनिश्चित करने के प्रावधानों की भी अनुमति देता है (धारा 42).हलाकि कानून और सरकारी भूमिका से ज्यादा जरुरी सामाजिक भूमिका है.
निश्चय हे महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में मर्दों कि बराबरी कर रही है, ऐसा इस लिए भी हो रहा है कि आज भारतीय समाज औरतो के काम या निर्णय लेने कि क्षमता को अछे अर्थों में ले रहा है.नारी कि असीम ताकत को पहचानने लगा है. आज ये बात सब कोई जान गया है, कि औरत और मर्द के लड़ाई में जीतता है तो दोनों, हरता है तो दोनों. स्त्री और पुरुष एक दुसरे के पूरक है.
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