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महंगाई नहीं कम होगी, सरकार की अर्थ ब्यवस्था महंगाई पर आधारित है महंगाई कम होगी तो सरकार का अर्थ व्यवस्था कमजोर पड़ जायेगा राजस्व में हो रहा इजाफा कम हो जायेगा. भ्रष्टाचार के लिए रूपये कम पड़ जायेंगे. जिसका रोना विकाश के नाम पर रोया जायेगा.
डीजल-पेट्रोल को ही देखें, पूरी दुनिया जानती है कि डीजल-पेट्रोल का दम बढ़ना यानि सारी वस्तुएं का दम बढ़ना होता है. डीजल-पेट्रोल का संवंध अंतराष्ट्रीय मार्केट से है. अंतराष्ट्रीय मार्केट में दाम बढ़ते ही तेल कम्पनियाँ हल्ला मचने लगती है कि घटा होने लगा. फिर बढे हुए दाम पर प्रतिशत के आधार पर टैक्स अपने आप बढ़ जाता है. राज्य सरकारों का वैट लगभग २०% तक, तथा अन्य टैक्स अपने-अपने दायरे में लागत मूल्य से ज्यादा हो जाता है. जिस डीजल-पेट्रोल पर कभी 10 रूपये टैक्स बनता था,आज लगभग 25 -30 रूपये है. ये सिलसिला आगे भी जरी रहेगा. मतलब कि मज़बूरी में जो अंतराष्ट्रीय मार्केट को जनता कि गाढ़ी कमाई सौपना पड़ता है,उसमे सरकारी टैक्स शौकिया जुड़ जाता है. भ्रष्ट तंत्र को चाहिए कि जिस प्रक्रिया के तहत पेट्रोल-पम्प डीलरों का कमिसन प्रति लीटर के हिसाब से 75 पैसे से 1.25 रूपये है,उसी प्रक्रिया के तहत सरकार का टैक्स भी प्रति लीटर के हिसाब से होना चाहिए.
जनता वोट दे कर पांच साल तक मनमानी करने कि छुट देती है. पांच साल का मनमानी का मतलब ये नहीं होता है,कि उन्ही लोगों को तंग करो जिसने ये शक्ति प्रदान की है. सही दिशा में मनमानी कर भारत को विश्व विजेता बनाया जा सकता है. महंगाई से त्रस्त जनता को राहत दिया जा सकता है. भारत में प्रति व्यक्ति आय बढ़ा है. अब अंतर पाटने की जरुरत है. प्रति व्यक्ति आय का अंतर कम कर देना है. इससे भारत खुशहाल होगा भारत सशक्त बनेगा. आजादी के वर्षगांठ पर ये सपथ हमें लेना चाहिए कि विश्व पटल पर भारत को शीर्ष पर पहुंचा के ही दम लेंगे.
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